रूपरेखा :
o प्रस्तावना
o त्रासदी
की परिभाषा
o त्रासदी
के अंग
1.
कथानक
2.
चरित्र
3.
पदावली
4.
विचार
5.
दृश्य-विधान
6.
गीत
o त्रासदी
और विरेचन
o सारांश
·
प्रस्तावना :
अरस्तू यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक थे
। उन्होंने दर्शन के साथ-साथ ज्ञान के अन्य अनुशासनों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
है । साहित्य-चिंतन उनमें से एक है। उन्होंने इस क्षेत्र में अपने गुरू प्लेटो की मान्यताओं
में संशोधन करते हुए प्रसिद्ध अनुकरण सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसका संबंध मुख्यतः साहित्य या काव्य की रचना-प्रक्रिया से है । प्लेटो ने अनुकरणमूलक होने
के साथ-साथ लोगों के भीतर स्थित मानो विकारों को प्रेरित करने के कारण काव्य का विरोध
किया था। उनकी इस दूसरी मान्यता का आधार मुख्य रूप से ‘ट्रेजडी’ थी, जो उस समय यूनानी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा
थी। प्लेटो यूनानी ट्रेजडी-परंपरा के महत्त्वपूर्ण कवि होमर के बारे में लिखा है— “यद्यपि
अपने यौवन के आरंभ से ही होमर के लिए मुझे संभ्रम तथा प्रेम रहा है, जिससे अब भी मेरे शब्द होठों पर लड़खड़ाने लगते हैं क्योंकि होमर मोहक
दुःखांतकीय पूरे समुदाय के महान नेता और गुरु हैं, किंतु
सत्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्त्व नहीं दिया जा सकता।” उन्होंने यह भी लिखा
है कि ‘काव्य मनोवेगों का पोषण करता है और उन्हें सींचता है’ तथा ‘दुःखांतक रोने धोने को बढ़ावा देकर समाज को
कमजोर बनाता है’। काव्य और विशेषतः ट्रेजडी के बारे मैं प्लेटो
की ये दोनों मान्यताएँ ही अरस्तू के ट्रेजडी संबंधी विवेचन और विरेचन सिद्धांत का आधार
है । उन्होंने इन दोनों के संबंध में एक साथ विचार किया है।
त्रासदी
की परिभाषा :
भारतीय साहित्य-चिंतन की तरह ही पश्चिमी
साहित्य-चिंतन का आरंभ भी मंचीय विधा से हुआ
। जैसे भारत में ‘नाट्यशास्त्र’ मुख्यतः नाटक-केन्द्रित ग्रंथ है, वैसे ही प्लेटो और
अरस्तू का साहित्य-चिंतन ‘त्रासदी’ को केंद्र
में रखकर विकसित हुआ है । ट्रेजडी और नाटक दोनों ही मंचीय विधाएँ हैं । उन्हें मानव
की अनुकरणमूलक आदिम प्रवृत्ति से जोड़कर आदिम विधा कहा जा सकता है । इस अनुकरणमूलकता
और उसके कार्यव्यापार रूप होने को अरस्तू ने अपनी परिभाषा में विशेष रूप से रेखांकित
भी किया है— “त्रासदी स्वतः पूर्ण, निश्चित आयाम से युक्त कार्य
की अनुकृति का नाम है । यह समाख्यान के रूप में न होकर कार्य-व्यापार-रूप में होती
है । इसका माध्यम नाटक के विभिन्न भागों में तदनुरूप प्रयुक्त सभी प्रकार के आभरणों
से अलंकृत भाषा होती है । उसमें करुणा तथा
त्रास के उद्रेक के द्वारा इन मनोविकारों का उचित विरेचन किया जाता है ।”
अरस्तू की इस परिभाषा में जो विंदु विशेष
रूप से रेखांकित किए जा सकते हैं, वे इसप्रकार हैं—
- 1. यह अनुकरण मूलक है ।
- 2. यह स्वतःपूर्ण और निश्चित आयामों से युक्त होती है ।
- 3. यह समाख्यान न होकर कार्य-व्यापार के रूप में होती है ।
- 4. यह भाषा के माध्यम से व्यक्त होती है, जो त्रासदी के विभिन्न भागों के अनुरूप होनी चाहिए ।
- 5. त्रासदी का उद्देश्य करुणा या त्रास द्वारा मनोविकारों का उचित विरेचन होता है ।
इसके अंगो को भी परिभाषित कीजिए
जवाब देंहटाएंTrasdi ke Ango ka bhi udharan de .......jarrori hai mere liye or baki k liye bhi
जवाब देंहटाएंAngo ko bhi spast kare
जवाब देंहटाएंNet ke according nhi h kya
जवाब देंहटाएंTarasadi vivechana
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